जानें कैसे अतीत का शुद्ध भोजन और श्रम आज के स्वास्थ्य से बेहतर था

स्वस्थ अतीत, चुनौतीपूर्ण वर्तमान: देव फिटनेस एक्सपर्ट के 56 सालों का अनुभव हमें क्या सिखाता है?

आज की तेज़ी से बदलती दुनिया में, जहाँ सुविधाएँ हमारी जीवनशैली को आकार दे रही हैं, वहीं स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं। देव फिटनेस एक्सपर्ट, अपने 56 वर्षों के गहन अनुभव के साथ, हमें एक ऐसे अतीत की याद दिलाते हैं जहाँ लोग स्वाभाविक रूप से लंबे और चौड़े हुआ करते थे। उनका विश्लेषण केवल शारीरिक बनावट पर नहीं रुकता, बल्कि हमारी जीवनशैली, खानपान और शारीरिक गतिविधियों के मूल सिद्धांतों पर प्रकाश डालता है।

अतीत की स्वस्थ जीवनशैली:

देव जी बताते हैं कि पहले के समय में लोगों के मजबूत शरीर का रहस्य शुद्ध खानपान और सुविधाओं का अभाव था। जब भोजन सीधे खेतों से आता था, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से अछूता, तब शरीर को असली पोषण मिलता था। आज के पैकेटबंद खाद्य पदार्थों और प्रसंस्कृत भोजन की तुलना में, वह समय पौष्टिक और प्राकृतिक आहार का स्वर्ण युग था।

लेकिन सिर्फ खानपान ही नहीं, शारीरिक श्रम भी एक महत्वपूर्ण कारक था। आधुनिक परिवहन और मनोरंजन के साधनों के अभाव में, चलना-फिरना जीवन का अभिन्न अंग था। देव जी याद दिलाते हैं कि कैसे बच्चे मीलों पैदल चलकर स्कूल जाते थे। यह घंटों की पैदल यात्रा उनके लिए सिर्फ शिक्षा का मार्ग नहीं थी, बल्कि बचपन से ही एक पूर्ण शारीरिक कसरत थी। मांसपेशियों का विकास, हड्डियों की मजबूती और हृदय प्रणाली का स्वास्थ्य, यह सब स्वाभाविक रूप से होता था। माताओं के लिए भी यही सच था; घरेलू काम-काज और कम सुविधाओं के चलते उन्हें भी पर्याप्त शारीरिक गतिविधि मिलती थी, जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतर रहता था।

मातृत्व और प्राकृतिक स्वास्थ्य:

शायद सबसे महत्वपूर्ण बिंदु माताओं के स्वास्थ्य और मातृत्व पर पड़ता है। जब माँ का शरीर प्राकृतिक रूप से स्वस्थ होता था, उनके हार्मोन्स संतुलित होते थे, तब वे स्वस्थ और बलवान बच्चों को जन्म देती थीं। यह एक ऐसा प्राकृतिक चक्र था जहाँ स्वस्थ माँ, स्वस्थ बच्चे को जन्म देती थी, और यह सिलसिला पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता था।

आज का विरोधाभास:

आज, स्थिति काफी बदल गई है। देव जी व्यंग्यात्मक रूप से कहते हैं कि बच्चे आज माँ के पेट से “चश्मा लगाकर” पैदा हो रहे हैं। यह एक मार्मिक टिप्पणी है जो हमारी आधुनिक जीवनशैली के नकारात्मक प्रभावों को उजागर करती है। बच्चों को अत्यधिक सुविधाएँ देने की होड़ में, हम उन्हें शारीरिक गतिविधियों से वंचित कर रहे हैं। स्क्रीन टाइम बढ़ गया है और खेल के मैदान खाली हो गए हैं।

माताओं के स्वास्थ्य पर भी इसका गहरा असर पड़ा है। गर्भावस्था के दौरान अस्वास्थ्यकर खाने की आदतें, जैसे टिक्की, मोमोज़, चाट, मैगी, बर्गर, पिज्जा का सेवन, यह कहकर कि “बच्चा मांग रहा है,” केवल अपने हार्मोनल संतुलन को बिगाड़ रहा है। यह प्रवृत्ति न केवल माँ के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। पोषण की कमी और अस्वास्थ्यकर भोजन के कारण, बच्चे जन्म से ही कमजोर या बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।

स्वस्थ भारत की ओर:

देव फिटनेस एक्सपर्ट का अनुभव हमें एक महत्वपूर्ण सबक सिखाता है: स्वस्थ जीवनशैली कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है। एक स्वस्थ परिवार ही एक स्वस्थ समाज और अंततः एक स्वस्थ राष्ट्र का निर्माण कर सकता है। हमें अपने बच्चों को अधिक शारीरिक गतिविधियों के लिए प्रेरित करना होगा, उन्हें प्राकृतिक और पौष्टिक भोजन की ओर लौटाना होगा, और माताओं को गर्भावस्था के दौरान सही पोषण के महत्व को समझना होगा।

यह समय है कि हम अतीत से सीखें और अपनी जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव लाएं। तभी हम एक ऐसा भारत बना पाएंगे जहाँ हर बच्चा स्वस्थ पैदा हो, और हर व्यक्ति एक पूर्ण, सक्रिय और निरोगी जीवन जी सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *